ग़ज़ब दौर है -
मंजुल भारद्वाज
ग़ज़ब दौर है
सहर गायब है
चारो ओर
क़हर है
लबों पे राम
दिलों में ज़हर है
सियासत सिर्फ़
अमीरों की तिजारत है
गरीबों की ज़िंदगी
फ़क़त इक मर्सिया है
अशर्फियों की ख़नक में
लहू की चीख
बेबसी का सबब है
दुआ कहां
पहुंचती हैं
तुम तक
अब सिर्फ़
शोर ही शोर है
ग़ज़ब दौर है!
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