राम नाम सत्य है!

मंजुल भारद्वाज



छद्म सिद्ध पाखंडी


सबसे पौराणिक नगरी की विरासत को


नेस्तनाबूद कर देते हैं


ऐसे सत्ताधीश अपने पापों को ढंकते हैं


धर्म नगरी के परचम से


राजधर्म की मर्यादा करते हैं


तार तार हर बार


प्राण जाए पर वचन ना जाए की रीत बदल


जुमले चलाते हैं


लाख बार झूठ बोलो


सत्ता के लिए हर वचन तोड़ो


सत्य मर जाए पर सत्ता ना जाए


जनता के भक्षक प्रलय काल में


गिद्ध अवतार ले विराजते हैं सत्ता पर


नोचतें हैं संविधान संसद को


लोकतंत्र का लहू पीते हुए


मुहूर्त निकाल उत्सव मनाते हैं


देश की बर्बादी का


ये स्व घोषित चाणक्य


कौड़ियों के भाव नीलम करते हैं मातृभूमि


देश पर निछावर होने वाले सैनिक


इन गिद्धों के लिए होते हैं


चुनाव जीतने के नुस्खे


अपने श्रम से देश को चलाने वाले मज़दूर


होते हैं


रेंगते हुए कीड़े मकोड़े


जिनके मसलने से प्रसन्न होता है मध्यमवर्ग


देश की संपत्ति लूटकर


पूंजीपतियों की तिजोरी भरता है मध्यमवर्ग


नागरिकता अधिकार को बेच


ग्राहक के स्टेटस सिंबल से


अपनी कब्र खोदता है मध्यमवर्ग


विकारी परिवार का जयकारा


होता है राष्ट्र निर्माण का उदघोष


देश की आत्मा अपना झोला लिए


चली जाती है धर्म नगरी से दूर


धर्म नगरी में सत्ता गिद्ध बनाते हैं


अपना विलासता भवन


जनता अपना लहू बहाते हुए


चलती रहती है अनंत यात्रा पर


राम नाम सत्य है


बोलते हुए!


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