इस ज़माने को लगता है ख़ुश हूँ बहुत....
सुरेंद्र सैनी
खामखां की दौड़ में व्यस्त हो गया हूँ
रोजाना का अब तो अभ्यस्त हो गया हूँ
अधूरे से कामों की फेहरिस्त हो गया हूँ
इस ज़माने को लगता है ख़ुश हूँ बहुत
सोचते हैं वो मैं तो मदमस्त हो गया हूँ
कितना इंतज़ार रहा मुझे मानसून का
देखो वक़्त गुजरते अगस्त हो गया हूँ
अब ये भागदौड़ मुझे थकाने लगी है
सतत दौड़ते - भागते पस्त हो गया हूँ
रिश्तों में कभी तल्खियां होने लगी है
कमजोर सा होकर निरस्त हो गया हूँ
"उड़ता"अफ़सोसे - पदस्त हो गया हूँ
बस खुद खर्च होते समस्त हो गया हूँ
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