R.N.I. No. UPHIN/2005/17084
मंजुल भारद्वाज
संस्कारी समाज में
औरत ज़ोर से अपना नाम ले ले
घर की खिड़कियाँ खड़कने लगती हैं
औरत ज़ोर से हंस दे
घर के दरवाज़े बोल उठते हैं
औरत अपने मन की कह दे
घर की बुनियाद हिल जाती है!
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