दिल है नादां अपने दिल से मैं बग़ावत क्या करूँ
प्यार को क्यों बेच दूँ
बलजीत सिंह बेनाम
दिल है नादां अपने दिल से मैं बग़ावत क्या करूँ
उनसे नफ़रत क्या करूँ उनसे मोहब्बत क्या करूँ
लौट कर वापस न आया है सितमगर आज तक
ये बता जाता कि माज़ी से जुड़े ख़त क्या करूँ
मैं दिखावा कर नहीं सकता हूँ दुनिया की तरह
मन में ही इज्ज़त नहीं तो झूठी इज्ज़त क्या करूँ
प्यार को क्यों बेच दूँ फिर हुस्न के बाज़ार में
लोग चाहे कुछ करें पर मैं सियासत क्या करूँ
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें