R.N.I. No. UPHIN/2005/17084
राधेशयाम प्रसाद
देवरिया पर्यावरण सुरक्षा को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए आम जनमानस को संदेश देते हुए कहा कि पर्यावरण दिवस मानवता को समन्वित समायोजित करने और समझने का दिवस है बार बार भूकंप महामारी तूफान संक्रमण हमारी आदतें प्रकृति के अतिशय दोहन मानव के विनाशकारी महत्वाकांक्षा लालच और शोषण की अति प्रकृति प्राकृतिक प्रकोप का कारण बनती है जैसे नदी पहाड़ों का अतिक्रमण वनों की कटाई वन माफियाओं की शरारत विकास के नाम पर वैश्विक और विस्फोटकों का संग्रह विनाशकारी हथियारों की होड़ आदि तमाम ऐसे कारण हैं जो हमें प्रकृति के समन्वय से विचलित करते हैं जल का अतिशय दोहन हमें मानवीय संवेदना से दूर करते हैं।विश्व के तमाम मुल्क पर्यावरण की आपसी रजामंदी तथा समझौते से दूर होते चले जा रहे हैं और पर्यावरण प्रदूषण का तोहमत एक दूसरे पर लगाते हैं आज गांव में एक वृक्ष की कटाई होने पर कानूनी कार्यवाही हो सकती है परंतु हजारों-हजारों वृक्षों की कटाई की जाती है क्योंकि यह सब विकास के नाम पर होता है इसमें बड़ी-बड़ी कंपनियां शामिल होती हैं देश की बड़ी आबादी को इसका परिणाम विस्थापन और बेरोजगारी के रूप में झेलना पड़ता है भोपाल गैस कांड जैसी घटनाएं हमारे सामने उदाहरण के तौर पर हैं ।आइए हम सब मिलकर प्रकृति से सामंजस्य स्थापित करना सीखें अति लालच की होड़ और अंधी दौड़ से बचें आज कोरोना जैसे वैश्विक महामारी ने हमें पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति सचेत रहना सिखाया है। प्रकृति का उपयोग पोषण के लिए होना चाहिए ना कि शोषण के लिए।
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