R.N.I. No. UPHIN/2005/17084
सुरेंद्र सैनी
डमडम डमडम डमरू बाजे
और बजे रात - दिन साज
कथा कहूं मैं हनुमान की
सब सुनो मेरे सरताज
जिसने सबके दोष हर लिए
उनकी कहानी का आगाज
मेहंदीपुर के मंदिर वाले
मेरे बालाजी महाराज
लाल-लाल वो चोला पहने
हाथ शस्त्र और गदा विराज
पवन -पुत्र की शान निराली
हर कोई बालाजी का दास
कांधे पर उसके जनेऊ साजे
पीछे उसके पूँछ विराज
कलियुग का बाला अवतारी
मेहंदीपुर मे शुरू है दाज^ (मुहूर्त )
वज्रा जैसी ललाट चमके
रूप है उसका बहुत विशाल
अंजनी-सुत तो संकट काटे
भागें हैं डरकर प्रेत -दराज
हनुमान सा राम भक्त नहीं
दूर - दूर फैला स्वराज
तीन देवता बसे मेहंदीपुर
कोतवाल, भैरों प्रेतराज
पूजा-पाठन समुदाय बना
दो महंत विद्यमान समाज
पर्वत के टुकड़े से बना है
नहीं बचा इसमें कोई राज
दो-दो जलधारा निकली थी
जिनका रहा अलग अंदाज
धरती में लाली छाई है
वादीयां देती है आवाज
राम - भक्त बजरंग बली
तोड़े है दुश्मन की नली
इनकी कृपा से भक्तों की
सारी विपदा एकपल मे टली
जो आए झोली भर ले जाए
नहीं कहीं दुख का अहसास
मन मेरा भक्ति मे रम गया
सुधरे मेरे कल और आज
घर से निकला,टूट गया था
जैसे बिन पानी का जहाज़
दूर जहाँ तक जाकर देखा
बस मुझे दिखता था सराज^ (पानी में जन्में जीव )
जितना माँगा, ज्यादा मिला
"उड़ता"बन गए मेरे हर काज
मेरे बालाजी महाराज.
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