R.N.I. No. UPHIN/2005/17084
मंजुल भारद्वाज
जिस हाथ में कलम हो
उस मुठी का खुलना जरूरी है
माना ख़ामोशी
तूफान समेटे होती है
वक़्त पर बेख़ौफ़
आवाज़ का बोलना ज़रुरी है
झूठतंत्र के विकारी काल में
अँधेरे को मिटाने के लिए
सच लिखती दिखाती कलम का
दीया बन जलना ज़रुरी है!
#कलम #मंजुलभारद्वाज
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें