भाई देश चलाओगे....

 


मंजुल भारद्वाज 


एक सड़क पर सब्ज़ी बेचने वाले से पूछा


भाई देश चलाओगे


बाबू हम कहाँ देश चला पायेंगे


सब्ज़ी खरीद लो


दो पैसा हमें मिले


बस पेट भर जाए


मच्छी बेचने वाली बाई को पूछा


देश चलाओगी


दूर हटो मच्छी का पानी लग जायेगा


खाने को सबको चाहिए


सर पर टोकरी रखो तो


सब बच बच कर निकलते हैं


देश वेश के लिए टाइम नहीं


मच्छी लेना है तो लो


यह सब बेचकर घर जाके


खाना भी बनाना है


तुमको तो पका पकाया मिलेगा


बस में चढ़ा


बस चालक को पूछा भाई


बस चलाते हो देश चलाओगे


ऐडा है क्या


पीछे जाओ


कंडक्टर से टिकट लो


आगे बढ़ो मास्क ठीक करो


वरना हो जायेगा कोरोना


बस से उतरते ही बड़े दिनों बाद


घर से निकले साहित्यकार से टकरा गए


भाई देश चलाओगे


भाई तुम तो क्रांतिकारी हो


हम साहित्यकार हैं


बड़े दिनो बाद दारू की दुकान खुली है


बस एक बात समझ लो


हम एक्टिविस्ट नहीं हैं


बाकी कल पोस्ट पढ़ लेना


हमारी बात सुनकर


अमीर दिखने वाला व्यक्ति बोला


देश की छोड़ो धंधा नहीं चल रहा


सब ठप्प पड़ा है


अच्छा मुनाफ़ा मिल रहा था


बस अब धंधा चल निकले


मुनाफ़ा होगा तब सरकार को टैक्स भर देंगे


देश टैक्स से चलता है भाई


चार आवारा दिखने वाले लड़कों ने पूछा


अरे ओ अंकल क्या सर्वे कर रहे हो


मैंने कहा देश चलाने वाला व्यक्ति ढूंढ रहा हूँ


अरे अंकल हमको लगा


कोई नौकरी वोकरी निकली है


अंकल सुनो सब पढ़कर नौकरी करेंगे


नहीं पढ़े तो वडा पाँव का खोमचा डालेंगे


हम गणपति का चंदा वसूलेंगे


इधर शाम को पियेंगे खायेंगे


फिर चुनाव आयेगा


हर पार्टी के नेता की चुनाव सुपारी लेंगे


ऐसे अपुन चुनाव का लेन देन सीख लेंगे


पहले नगर सेवक


फिर आमदार


फिर खासदार


बस फिर क्या


समझे अंकल


मैं लड़कों को सुनता रहा


और


गांधी,नेहरु,आंबेडकर के


बुतों को देखता रहा!


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