आज महिलाओं के सामजिक और मानसिक मूल्यों की पराकाष्ठा 

कार्यरत महिलाओं के जीवन मूल्यों पर मानसिक स्वास्थ्य जीवन संतुष्टि एवं समायोजन के प्रभाव का अध्ययन



डॉ सरिता मौर्या 


चंदौलीडॉ सरिता मौर्य पत्नी डा. परमानंद मौर्य शुरू से ही समाज मेंअच्छे कार्य करने की इच्छा थी, लेकिन वह किस रूप में कहां से शुरू किया जाए वह भी कैसे समाज सेवा की जाए, जब मैं इलाहाबाद से रिसर्च कर रही थी तो उस समय विश्वविद्यालय द्वारा कुछ गांव, दिव्यांग कॉलेज ,प्राथमिक विद्यालय, माघ मेला, इफको फूलपुर में सर्वे करके अपने-अपने विचार को व्यक्त करना था। जब मैं गांव में सर्वे के लिए गई तो मैने देखा कि ग्रामीण इलाकों में विधवा महिलाओं व बेटियों के प्रति समाज की सोच बहुत ही दयनीय देखने को मिली।


थोड़ा एक लड़की बनकर कल्पना कर हकीकत को देखें...


जब लडकी जन्म लेती है तो एक पढ़ा-लिखा समाज भी उसे संसार में न लाने का प्रयास करता है...


क्योंकि वह सोचता है कि जब लड़की आएगी तो जिम्मेदारियों के साथ हमें इनका पालन-पोषण करना होगा...


हमें कुछ भी हासिल नहीं होगा, इसे कोख में ही खत्म कर दो तो अच्छा है...


बदलते परिवेश में भी सोच नहीं बदलते दिखाई पड़ रही है...


छात्र जीवन से ही प्रेरणा मिली- इलाहाबाद में रिसर्च के दौरान हम लोगों के कुलपति द्वारा हम लोगों को गांव की मिट्टी,गांव की शिक्षा, गांव के विकास और गांव के लोगों के जीवन यापन से रूबरू कराया गया। जहां से हम लोगों को ग्रामीण अंचलो के विकास और ग्रामीण महिलाओं,बेटियों के जीवन के बारे में अनुभव प्राप्त हुआ। सम्मान का अधिकार- विधवा महिलाओं को समाज में सम्मानजनक निगाहों से व शुभ कार्यों में शामिल किया जाना चाहिए।


घर परिवार व समाज में उनके प्रति समरसता का रवैया अपनाया जाए। गांव से पहल की शुरुआत- बदलते हुए परिवेश में विधवा महिलाओं को समाज द्वारा भेदभाव की नजरों से देखा जाता है, और साथ ही साथ विधवा महिलाओं को शुभ कार्यों में शामिल होने का अधिकार नहीं दिया जाता।


उपलब्धि- मैंने अपने गांव से ही कुछ विधवा महिलाओं को शुभ कार्यों में शामिल कराया और कुछ विधवा महिलाओं को उनके बच्चों की शादी में शुभ कार्यों में शामिल कराया। सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार- इस बदलते हुए परिवेश में जहां पर लोग पूरी दुनिया की खबर पलक झपकते जान लेते हैं,वह बेटियों के द्वारा हर क्षेत्र में कामयाबी के शिखर को चूमा गया। आज उसी परिवेश में विधवा महिलाओं व असहाय बेटियों के साथ कुरीतियों व अत्याचार का आतंक अपने चरम सीमा पर है ऐसा क्यों ? मेरा मानना है कि हम किसी कार्य को नहीं करते हैं तो उसमें हमारी गलती होती है लेकिन जब एक स्त्री के पति का देहांत हो जाता है तो उसमें उसकी क्या गलती होती है और समाज उसे विधवा जैसे क्रूर शब्दों से नवाज देता है।


महिलाओं को सम्मान कैसे मिले जिसमें दिखावा ना हो उसी मिशन को लेकर मैं आगे बढ़ रही हूं..


जो जीवन पर्यंत बदनसीबी का जीवन जीने पर मजबूर हो जाती है। थोड़ा एक लड़की बनकर कल्पना कर हकीकत को देखें जब लडकी जन्म लेती है तो एक पढ़ा-लिखा समाज भी उसे संसार में न लाने का प्रयास करता है क्योंकि वह सोचता है कि जब लड़की आएगी तो जिम्मेदारियों के साथ हमें इनका पालन-पोषण करना होगा और हमें कुछ भी हासिल नहीं होगा,इसे कोख में ही खत्म कर दो तो अच्छा है बदलते परिवेश में भी सोच नहीं बदलते दिखाई पड़ रही है।


आए दिन खबरों के माध्यम से कोई नवजात बच्ची कपड़े में लिपटी झाड़ी में मिलती है। यदि इसके आगे बढ़े और प्रयास करें कि इनकी जिंदगियों को समझे तो किसी तरह यह बड़ी होती है तो और उसके बाद मौजूदा समय में कुछ पढ़ा लिखा करके उसे पराया धन मानकर विवाह कर भेज दिया जाता है।उसे कभी भी वह प्यार नहीं दिया जाता जिसके वह लायक होती हैं, लेकिन उसी में वह लड़की अपने को संतुष्ट करते हुए जिंदगी बसर करती है।


चाहे वह बहन के रूप में हो,चाहे वह पत्नी के रूप में हो, चाहे वह मां के रूप में क्यों ना हो सब तरीकों से एक महिला अपने आपको सभी हालातों से समझौता करते हुए समाज में सब को अपनाते हुए आगे बढ़ती है, लेकिन उसके बाद भी उसे कुछ हासिल नहीं होता ना तो बच्चों का प्यार मिल पाता है और ना ही पति द्वारा कोई विशेष तवज्जो मिल पाती है जिसकी वह हकदार होती है। इसकी वजह जो भी हो लेकिन यदि आगे बढ़ते हैं एक दर्दनाक हादसा हो जाने के बाद रंगीन साड़ियों में लिपटी हुई महिला सफेद पोशाक में लिपट जाती है, मांग का सिंदूर समाज छीन लेता है और लोग उसे विधवा कहते हैं।उसके उपरांत एक नई संघर्ष की बेला शुरू होती है जिसमें महिला को कुछ भी नसीब नहीं होता ।


यदि विधवा महिला यौवन रुपी आगोश में होती है तो समाज के दरिंदे उसे नोच खाने के हिसाब से देखते हैं, इसे मैंने महसूस किया इसके बाद मैंने सोचा कि मैं इस पर काम करूं और मैं निकल पड़ी एक ऐसे मिशन पर जो काफी कठिन हो सकता था।ऐसे में मैंने सोचा कि क्यों ना समाज के उन चुनिंदा लोगों के बीच जाया जाए इसलिए मैंने कलम के सिपाही से मिलने का प्रण किया। जगह जगह पर कलम के सिपाहियों को अपने लक्ष्य को बताया और उनकी सोच को जानने का प्रयास किया। मैंने इतने दिनों में देखा है कि विधवा महिलाएं जो समाज से बहिष्कृत हैं उन्हे समाज में न्याय कैसे मिले इसे दिलाना है।


समाज की सोच बदल रही है तो विधवा आज कैसे अछूत है। इसके लिए एक मिशन के रूप में काम करने की आवश्यकता है और मैं इस पर काम कर रही हूं उन्हें आत्मनिर्भर बनाकर समाज में सम्मान दिलाने के लिए कृत संकल्पित हूँ...


मैं पिछले कई वर्षों से इस पर प्रयास कर रही हूं लेकिन जितना सहयोग समाज से मिलना चाहिए उतना सहयोग अभी तक मिल नहीं पा रहा है। वर्तमान समय में भ्रूण हत्या सामाजिक अभिशाप है मां के गर्भ में भी बेटी को मार दिया जाता है इसके अलावा एक सामाजिक सत्य है कि जब एक लडका पैदा होता है तो घर की महिलाएं शगुन की गीत के रूप में सोहर गाती है, लेकिन जब लडकी जन्म लेती है तो लोग उसके लिए कोई शुभ संगीत नहीं गाते हैं।जबकि बेटी ही दो परिवारों को सुरक्षित करती है।वह सृष्टि की जननी है। क्यों इसका जवाब देना होगा।


जब बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम चलाया जा रहा है तो भ्रूण हत्या क्यों लड़की जन्म ले तो शुभ संगीत क्यों नहीं, यक्ष प्रश्न को लेकर मैं काम कर रही हूं। यक्ष प्रश्न का जवाब मैं सिर्फ समाज के द्वारा दिलवाना चाहती हूं महिलाओं को सम्मान कैसे मिले जिसमें दिखावा ना हो उसी मिशन को लेकर मैं आगे बढ़ रही हूं । मैंने सामाजिक सेवा करने का बीड़ा उठाया है जो सभी के सहयोग से ही संभव हो पाएगा। मेरे द्वारा 8 जनवरी 2019 को विधवा महिला सम्मान समारोह कराया गया जिसमें मुख्य अतिथि पुलिस अधीक्षक संतोष कुमार सिंह जी थे और मेरे द्वारा हजारों महिलाओं को अंग वस्त्र के रूप में साल देकर सम्मानित कराया गया और यह मुहिम आगे भी जारी रहेगी।


अवार्ड- अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर "आयरन लेडी" अवार्ड "स्वर्ण पदक" से सम्मानित राष्ट्रीय स्तर पर नई दिल्ली में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में "बेटियां अवार्ड" से सम्मानित अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर नेपाल राष्ट्र में नेपाल सरकार द्वारा "एशिया कॉन्टिनेंट अवार्ड" से सम्मानित जनपद स्तर पर जिलाधिकारी प्रतिनिधि के रूप में उपजिलाधिकारी जी सकलडीहा द्वारा सम्मानित जनपद स्तर पर विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा एनजीओ द्वारा प्रमाण पत्र देकर सम्मानित मित्र परिषद इलाहाबाद के द्वारा सम्मानित उपरोक्त के अलावा राष्ट्रीय, अंर्तराष्ट्रीय सेमिनारो में महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों पर विचार व्यक्त करने पर प्रमाण पत्र देकर सम्मानित इसके अलावा मेरा कार्य पौधारोपण करना, मतदाता जागरूकता वह सामाजिक कार्यों में प्रमुखता से भाग लेना


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