सरहद पर सैनिक और सड़क पर चलता मज़दूर:-मंजुल भारद्वाज

 


कविता


1दर्द की चाशनी में पगी कविता लिखी जा रही है खूब पढ़ी जा रही हैं आभासी पटल पर वायरल हैं पढने वाले दर्द से व्याकुल हो खूब रो रहे हैं कवि अभिभूत हैं !


2 कवि दर्द को पिरो अपने असहाय होने की गाथा लिख रहा है अपनी निरर्थकता को स्वीकार कर रहा है प्रबुद्ध वर्ग इससे अभिभूत है!


3 पर दर्द सहने दर्द देने वाले को साफ़ साफ़ किस चश्में से कौन कवि देख रहा है? यह कविता से नदारद है जैसे शरीर से रीढ़!


4 दर्द के यह शब्द बहादुर कवि क्या बर्फ़ में पिघलते गलते सैनिकों को भी लाचार विवश,विचार हीन,मज़बूर बताने की हिम्मत करेगें?


या देश भक्ति में उनके संघर्ष,साहस,वीरता का वीर रस में गुणगान करेंगे क्योंकि वो सरहद पर दुश्मन से लड़ते हैं


पर देश के अंदर देश की सत्ता पर बैठे संविधान और लोकतंत्र के विध्वंसक से संघर्ष करने वाले मज़दूर बदहवास हैं


लाचार हैं विचार हीन हैं क्यों?


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