दर्शक रंगकर्म का आधार है सरकार नहीं:-मंजुल भारद्वाज

सरकार का रंगकर्म से क्या सम्बन्ध? रंगकर्म विद्रोह है सरकार के दमन के खिलाफ़. हर सरकार चाहे उसका कोई रंग हो सत्ता के लिए दमन करती है.जो सरकार दमन करती है वो रंगकर्म को कभी पनपने नहीं देती. वो रंगकर्म के नाम पर रंग नुमाइश को प्रोत्साहित करती है. सरकारी रंग प्रशिक्षण संस्थानों में रंगदृष्टि शून्य रंगकर्मियों की भीड़ तैयार करती है.इस भीड़ को अपने दरबार में जयकारा लगाने के लिए पालती है. पद्म सम्मान देती है. स्कॉलरशिप देती है. सरकारी बाड़े में रखती है. इसका मतलब यह है की जब संविधान की शपथ लेने वाले देश के प्रधान सचिव प्रधान सेवक से सवाल नहीं पूछता तब एक सरकारी ड्रामा स्कूल, संगीत नाटक अकादमी वाले पालतुओं की क्या औकात.सरकार की नीति साफ़ है जयकारा लगाओ इनाम पाओ. यह सरकारी मंशा जो नहीं समझते वो ताउम्र एक भ्रम में जीते हैं और रंगकर्मी के नाम पर रंग गिरगिट बनकर रंग नुमाइश करते हैं. रंगकर्मी को रंगकर्म करना है और रंगकर्म से आजीविका चलानी है तो दर्शक से संवाद करना अनिवार्य है. दर्शक के साथ रंगदृष्टि संवाद ही रंगकर्मी की संजीवनी है. कठिन होता है. कई वर्षों तक फ़ाके खाने पड़ते हैं. समाज की दुत्कार भी सहनी पड़ती है. क्योंकि रंगनुमाइश दर्शकों को रंगकर्म का उद्देश्य मनोरंजन तक सीमित कर भरमाती है दर्शक भी शुरू में आपसे वही मांग करते हैं. आपको उनके इस भ्रम को तोडना होगा. यह भ्रम जब आप तोड़ देते हैं तब दर्शक आपके साथ जुड़कर आपको रंगकर्म के लिए उत्प्रेरित करता है और हमेशा आपकी रंगदृष्टि के साथ होता है. क्योंकि रंगकर्म 'मनुष्य को मनुष्य बनाने का कलात्मक कर्म है' और आपके रंगकर्म से जब दर्शक अपने अंदर बेहतर मनुष्य होने का अहसास करता है तब वो कभी आपको निराश और मोहताज़ नहीं करता. दर्शक रंगकर्म का आधार है सरकार नहीं. थिएटर ऑफ़ रेलेवंस रंग सिद्दांत के अनुसार दर्शक पहला और सशक्त रंगकर्मी है!


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