चपलू की मौसी..

सुरेंद्र सैनी 


संत कबीर सुनो फिरदोसी
बात कहूँ मै भीगी - ओसी^ (ओस में भीगी हुई )
टकटकी लगाए देखें है मिश्रा 
चल रही नहीं यहाँ चारोसी^.(घुड़सवार प्रतिभागी )
लोग बहुत हैं गली-पड़ौसी 
पर सबसे प्यारी चपलू की मौसी. 


अपनी भाषा में गीत वो गाती
चलते-चलते ठुमके लगाती. 
बात-बात हंसती मुस्काती 
बच्चों को पकवान खिलाती
क्यों देती बार-बार वो तोसी^.(चेतावनी )
सबकी प्यारी चपलू की मौसी. 


फैशन उसको अच्छा लगता है 
कभी झूठ उसे सच्चा लगता है
जाने कैसी महक उठती है 
परिधानी इत्र अच्छा लगता है 
वो सारी गली की चम्बल-कोसी
सबकी प्यारी चपलू की मौसी. 


वो कद की थोड़ी छोटी है 
वो तन से थोड़ी मोटी है 
वो चलती एैसी लगती है 
जैसे शतरंज की गोटी है 
इसमें कौन कहाँ का दोषी
सबकी प्यारी चपलू की मौसी. 


अलग सा उसका स्वभाव है 
अलग से उसके हाव-भाव हैं
सदा फुर्सत में रहती है मौसी 
नहीं उसे कोई समयाभाव है
विवाह पूर्व पांडे,अब है जोशी
सबकी प्यारी चपलू की मौसी.


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