आतंक का दूसरा नाम मोनू पहाड़ी

कानपुर में खत्म हुआ पहाड़ी का खौफ

 

संजय मौर्य 


जेल में गुमनामी की मौत मारा गया आतंक का दूसरा नाम मोनू पहाड़ी, जाने कौन था पहाड़ी और कैसे बना खौफ का दूसरा नाम*


कानपुर| अपराध जगत में खौफ का दूसरा नाम रईस का काफी करीबी रहा मोनू उर्फ़ पहाड़ी उर्फ़ राशिद इटावा जेल में कैदियों से हुवे आपसी संघर्ष में मारा गया है। जेल अधीक्षक के जारी किये गए पत्र के अनुसार मोनू पहाड़ी का आज जेल में बंद कुछ कैदियों से झगडा हो गया था। इस दौरान कुछ कैदियों और जेल के पुलिस कर्मियों को भी चोट आई थी। इसके बाद जेल पुलिस ने गंभीर रूप से घायल मोनू पहाड़ी को जिला चिकित्सालय इटावा भेजा जहा डाक्टरों ने उसको मृत घोषित कर दिया।


पहले रईस बनारसी उसके बाद मोनू पहाड़ी के मरने के बाद अब कानपुर के कारोबारियों ने कही न कही राहत की साँस लिया होगा। कानपुर के लिए अपराध और आतंक का दूसरा नाम बना मोनू पहाड़ी बचपन से ही अपराधिक मानसिकता का रहा कहना गलत नही होगा। उसको पुलिस ने सबसे पहले बार जब पकड़ा था तो उसकी उम्र मात्र 16 साल थी। नाबालिग होने की स्थिति में उसको बाल सुधार गृह में रखा गया था। इसके कुछ दिन बाद ही वह वहा से भाग गया था।



कानपुर के दलेलपुरवा थाना अनवरगंज निवासी मोनू पहाड़ी पर तीन दर्जन से अधिक मामले कानपुर नगर में दर्ज थे। कानपुर के अपराध जगत में सबसे कम उम्र का हिस्ट्रीशीट होने का शायद रिकॉर्ड मोनू पहाड़ी के नाम ही रहा होगा। मात्र 17 वर्ष की आयु में ही मोनू पहाड़ी जरायम की दुनिया में आ चूका था। उसके पिता नासिर अली की रिक्शा कंपनी थी और उसके दो अन्य भाई नाजिम और आशु भी है जो पुलिस के खौफ से मुंबई शिफ्ट हो चुके है। माँ शहनाज़ बेगम और मौसियों क्रमशः गुल्नाज़, गौसिया का चहेता मोनू अपने मामाओ चकेरी निवासी शोएब और अहमद का दुलारा था। उसके दो चाचा क्रमशः पप्पू और महफूज़ को भी मोनू के चक्कर में कई बार पुलिस के पूछताछ का सामना करना पड़ा था।


9 अगस्त 2014 को एसटीऍफ़ ने उसको ब्रह्मदेव मंदिर के पास घेर लिया था और आत्मसमर्पण करने को कहा था। इस बीच उसने पुलिस पर ही हमला कर दिया था और बाइक लेकर भागने वाला था कि उसकी बाइक फिसलकर गिर पड़ी और एसटीऍफ़ के हत्थे पड़ गया। जिसके बाद अदालत ने इसको 2016 में अदालत ने पुलिस पर हमले का दोषी करार देते हुवे 7 साल कैद-ए-बामुशक्कत की सजा सुनाई थी।


17 साल की उम्र में ही बन गया था -अपराधी
मोनू पहाड़ी बचपन से ही पढ़ाई में कमज़ोर और शरारती बच्चा हुआ करता था। इस दौरान उसकी संगत भी बुरी हो गई और वह बिगड़ता ही गया। मात्र 16 साल की उम्र में वह पहली बार मकान के एक विवाद में पुलिस के हत्थे चढ़ गया। उसको बाल सुधार गृह में रखा गया जहा से कुछ दिनों बाद वह भाग गया था। इसके बाद से उसका साथ कुख्यात अपराधी इसरार पागल से हो गया। उसने इसरार पागल के तेवर और रसूख को देखा और फिर अपराध जगत में मुड कर नहीं देखा। कुछ दिनों बाद इसरार कानपुर छोड़ कर चला गया और उसने अपने गैंग की कमान मोनू को दे दिया।इसके बाद मोनू ने डी 2 गैंग से हाथ मिला लिया और अपना एक खुद का गैंग बना बैठा। इसके साथ ही जल्द ही अमीर बनने की चाहत में वह शानू बॉस के साथ मिलकर भाड़े में हत्या करने लगा।


 उसने रफीक के कहने पर कई हत्या किया। मात्र छः महीने के अन्दर ही चमड़ा कारोबारी को चकेरी में और श्यामनगर के वारदाना कारोबारी को अगवा कर मोटी फिरौती वसूल लिया। इसके बाद से ही उसकी दहशत कायम हो गई और कारोबारी उसकी मुहमांगी पर्ची (रंगदारी) उसको देने लगे। उसके आतंक से तंग आकर करोबारियो ने आला अधिकारियो से शिकायत किया और पुलिस ने उस पर पचास हज़ार का इनाम घोषित कर दिया। इसके बाद ही पुलिस उसको एनकाउंटर के लिए तलाशने लगी। इसके बाद वह कानपुर से भाग कर वाराणसी आ गया और रईस बनारसी से उसकी यहाँ से दोस्ती गहरी हो गई। इस दौरान वह रईस के ज़रिये बनारस के एक बाहुबली के संपर्क में आ गया और कई घटनाओ में इसके बाद उसका नाम आया।


*बड़ी थी मोनू की गैंग*


पत्रिका की खबर और मोनू के हिस्ट्रीशीट पर नज़र डाला जाए तो उसके मुताबिक उसके गैंग में हीरामन पुरवा का शरीफ डफाली, शानू चिकना उर्फ़ शानू वाईकर, मिया मुनक्कू, रेहान उर्फ़ गुड्डू, आफाक सुनहरा, अख़लाक़, चमनगंज का कालू, नाला रोड का नौशाद, शेरू, बबुआ, आलम, शानू मोटा, पप्पू खटिक थे। पत्रिका की एक खबर को आधार माने तो मिया मुनक्कू, शानू चिकना और रेहान उर्फ़ गुड्डू पर मोनू पहाड़ी सबसे अधिक भरोसा करता था। गैंग को पहाड़ी बहुत ही सिस्टम से चलता था। कोई एक दुसरे के काम में नहीं हाथ डालता था। पप्पू खटिक का काम भाड़े की हत्या, लूट, अपहरण, फिरौती वसूलना था। समाचारों और सूत्रों के अनुसार शानू चिकना का काम असलहे और गाडी उपलब्ध करवाना था जबकि रेहान का काम किसी मेंबर के जेल जाने के बाद उसकी ज़मानत का इंतज़ाम करना था।


*दिनदहाड़े हत्या का शौक़ीन मरा जेल की काल कोठरी में*


मोनू पहाड़ी भले ही जेल की काल कोठरी में ही मरा मगर उसका शौक दिनदहाड़े हत्या करना था। इसका कारण था कि शहर में उसकी दहशत कायम रह सके और उसको रंगदारी मिल सके। उसने सबसे पहले डी-2 गैंग से सुपारी लिया और लाला हड्डी को दिनदहाड़े गोली मार दिया। लाला हड्डी को उसने दहशत कायम रखने के लिए ताबड़तोड़ 7 गोलिया मारी थी। इसके बाद मूलगंज चौराहे पर सरेआम हसींन टुंडा की गोली मार कर हत्या किया था। इस बार उसने हसीन टुंडा को 5 गोलिया मारी थी। उसने स्मैक तस्कर से सुपारी लेकर भरी बाज़ार में चौरसिया की हत्या किया था। चौरसिया को उसने आठ गोलिया मारी थी। इसी दौरान उसको जूही निवासी नेहा से इश्क हो गया।


इश्क परवान चढ़ गया और नेहा के इश्क में पागल मोनू उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता था। इस दौरान मोनू पहाड़ी गिरफ्तार हो गया। उसने अपने गुर्गे बरखुरदार को उसके घर की देखभाल के लिए कह रखा था। इस दौरान बरखुरदार मोनू की प्रेमिका के घर जाने लगा। इसके बाद बरखुरदार जो खुद भी एक अपराधी था की नजदीकिया नेहा से बढ़ने लगी। इसकी सुचना जेल में बैठे मोनू को लग गई। जिससे वह अपनी माशूका के बेवफाई से मचल उठा और पेशी के दौरान एक दिन वह पुलिस हिरासत से भाग गया। इसके बाद उसने जूही में भरी दोपहर नेहा की गोली मार कर हत्या कर डाला। उसके दिमाग में नफरत कुछ इस कदर थी की उसने नेहा को कुल 7 गोलिया मारी थी, जिसमे से 5 गोली उसने नेहा के गुप्तांग पर मारी थी। इसके बाद उसने अपराधी और अपने साथी बरखुरदार की भी हत्या कर डाला। बरखुरदार को भी उसने 7 गोलिया मारी थी जिसमे उसके चहरे पर तीन गोली मारी थी। नेहा हत्या में उसके साथ रईस बनारसी का भी नाम सामने आया था।


इसके बाद रईस बनारसी और मोनू पहाड़ी की दहशत कायम हो गई और नवीन मार्किट समेत अन्य बाजारों से मोनू पहाड़ी की रंगदारी उतरने लगी जबकि रईस ने अपने सिंडिकेट के पास बिल्डरो का काम रखा। इस दौरान मोनू पहाड़ी पुलिस के लिए ख़ासा सरदर्द बन बैठा था और कारोबारियों के लिए दहशत का नाम हो गया था। मोनू के जेल जाने के बाद से रईस बनारसी ने शरीफ डफाली के गुर्गो को अपने साथ मिला लिया और अपना अलग गैंग चलाने लगा। रईस के मरने के बाद सूत्र बताते है कि शरीफ डफाली रईस के गैंग को दीपक वर्मा के साथ मिलकर चला रहा है। पचास हज़ार का इनामिया दीपक वर्मा अभी तक पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा है। उधर रईस के मरने के बाद से शरीफ डफाली भी पुलिस के पकड़ से दूर है। सूत्र बताते है कि दोनों ही वापस मोनू पहाड़ी के संरक्षण में चले गए थे। अब मोनू पहाड़ी के मरने के बाद से गैंग किसके द्वारा संचालित होता है इस पर पुलिस की पैनी नज़र है।



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