एक कहकशां है.
हरदिन होती जंग की तैयारी
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल, झज्जर (हरियाणा)
कौन तारों के साथ जाकर बसा है.
आकाश में कौन सा नक्शा बना है.
हर दिन पहेली,
जीवन एक जलसा है.
कभी हम रोए, तो जग हँसा है
एक बंधन है जो बखूबी कसा है.
वैसे तो ये संसार अपना है,
दुनियादारी का कोई नशा है.
होठों पर एक कहकशां है.
अपना इरादा अचल सा है,
रह -रह के मन मचलता है.
हरदिन होती जंग की तैयारी,
मुसाफिर रात -दिन चलता है.
आँखों में तिलिस्म जग सा है,
कोई ख़्वाब पलक पर रक्सा है.
नज़रों में कुछ घूमता है "उड़ता ",
देखकर मंजर मानव अवाक् सा है.
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