एक गुल खिलने लगा
एक दस्तक
सुरेन्द्र सैनी
कोई ना आया था अब तक.
किसी ने दी है दिल पर दस्तक.
नज़रें उठा कर देखा मैंने,
हुआ मेरा उस ओर मस्तक.
चलो एक गुल खिलने लगा है,
वरना ये बाग खाली था कल तक.
कबसे इंतज़ार में गुजर रहा था,
रुका रहा था कितने पल तक.
माना की बेज़ार कभी था "उड़ता "
ख़ुशी नहीं थी कोई अल तक.
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