अभी तो पूरी महाभारत लिखनी बाकी
तिलांजली
डॉ इला रंजन
कहां कह पाते है हम उनसे सब कुछ,
मन में रह जाता अक्सर बहुत कुछ।
कहां खोल पाते हम अपने घरों के सब,
कब से बंद खिड़कियों और दरवाजों को।
कहां सुलझा पाते अपने रिश्तो की उलझाने,
वों समय के साथ और ज्यादा उलझती।
कर्तव्य की राह भी कभी आसान नहीं होती,
सदा अनेक बंधनों और वादों में जकड़ी होती।
बस सर्वश्रेष्ठ बनने की अनवरत कोशिश में,
अभी अपनों की तिलांजली बाकी है।
कहां देख पाये है इसका अंतिम परिणाम,
अभी तो पूरी महाभारत लिखनी बाकी है।
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