आएगी पतझड़ तो गिरेंगे पत्ते!
उसे मना लो ना..
सुरेन्द्र सैनी
रूठी है कुदरत उसे मना लो ना.
कशिश तेरी मोहब्बत अपना बना लो ना.
शहर में नया, सुनसान सा अकेला,
जाकर महबूब के दिल में पनाह लो ना.
माना की इश्क़ में गिरना लाज़िमी है,
मगर कभी तो खुदगर्ज़ी का चना लो ना.
तेरी हर अदा पर कुर्बान है ज़माना,
कि उसके हर नाज़ को सराह लो ना.
आएगी पतझड़ तो गिरेंगे पत्ते भी,
तुम मगर हौसलों का तना लो ना.
तेरी नाराज़गी में डूबकर नज़र नहीं उठती,
"उड़ता "कभी सरे -राह आमना -सामना लो ना.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें