रात भर का नूर -ओस

शरद ऋतू के आगमन पर ...

 

-मंजुल भारद्वाज

 

रातभर नूर 


बूंद बूंद 


टपकता रहा 


हरे भरे गलीचे पर 


शरद ऋतू के आगमन पर 


पेड़ अपने फूलों की   


एक एक गुलाबी पंखुड़ी गिरा


सजाता रहा वसुंधरा का आँचल 


प्रेम में पगी  


आँखों की शबनम  


जीवन को पल्लवित करती हुई 


सूर्य किरण से 


सितारों सी चमक उठी 


दमकती हुई सुबह लिए!



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