विश्व से खाद्यानों की समस्या खत्म हो जायेगी ?

ताकि भूख से एक भी व्यक्ति को अपनी जान गंवानी न पड़े...

(16 अक्टूबर - यू.एन. विश्व खाद्य दिवस पर विशेष) 


हर देश कृषि के क्षेत्र में एक-दूसरे का सहयोग करें तथा एकता के साथ मिलजुल कर रहे तो सारे विश्व से खाद्यानों की समस्या खत्म हो जाए...


संसार में भोजन की कमी, कुपोषण और भूख से एक भी व्यक्ति को जूझना न पड़े तथा अपनी जान न गंवानी पड़े...


प्रदीप कुमार सिंह


भारतीय मूल के अमेरिकी अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी को गरीबी पर शोध के लिए अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार मिलने पर  संयुक्त राष्ट्र संघ ने खाद्य एवं कृषि संगठन (एफ,ए.ओ.) की स्थापना विश्व में खाद्यानों की तरफ जागरुकता फैलाने और भूख से निपटने के लिए की थी। सन् 1979 से 16 अक्टूबर के दिन को विश्व खाद्य दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। इसके प्रमुख उद्देश्य विश्व भर में जीवन स्तर व पोषण स्तर को ऊँचा उठाना, समस्त खाद्य एवं कृषि उत्पादों के  त्पादन एवं विपणन में सुधार लाना, ग्रामीण जनता के जीवन स्तर का उत्थान करना और इन क्रियाओं के माध्यम से भूख निवारण करना ही इसका मूल कार्य है। अगर हर देश कृषि के क्षेत्र में एक-दूसरे का सहयोग करें तथा एकता के साथ मिलजुल कर रहे तो सारे विश्व से खाद्यानों की समस्या खत्म हो जाए। संसार में भोजन की कमी, कुपोषण और भूख से एक भी व्यक्ति को जूझना न पड़े तथा अपनी जान न गंवानी पड़े।


विश्व के करोड़ों लोगों द्वारा प्रतिदिन भूख से लड़ा जा रहा युद्ध अब वोटरशिप अधिकार कानून बनाकर हमें जीतना ही है!...  
क्रान्तिकारी विचारक विश्वात्मा भरत गांधी का मानना है कि वोटरशिप अधिकार कानून बनाकर विश्व के करोड़ों लोगों द्वारा भूख से प्रतिदिन लड़ा जा रहा युद्ध अब हमें मिलकर जीतना ही है। वोटरशिप योजना का जन्म उनके 25 वर्षों के संघर्षपूर्ण जीवन से हुआ है। वोटरशिप योजना के अन्तर्गत देश के प्रत्येक वोटर को उसके हिस्से की आधी धनराशि जो कि लगभग रूपये छः हजार प्रतिमाह बनती है, उसके बैंक खाते में ट्रान्सफर करने की मांग भारत सरकार से की जा रही है।


वोटर के हिस्से की आधी धनराशि को सरकार विकास कार्यों में उपयोग करने का सुझाव दिया गया है। प्रजातियों की विविधता के लिए जीन बैंक की स्थापना एक क्रान्तिकारी कदम है। जीन बैंक कृषि के भविष्य के लिए इंश्योरंेस पाॅलिसी की तरह हैं - जीन बैंक पादप प्रजातियों की विविधता को संरक्षित करते हैं। कठिन फसल प्रकारों के प्रजनन के लिए संसाधन उपलब्ध कराते हैं। किसी प्रकार की आपदा के कठिन समय में पीड़ित व्यक्तियों को खाद्यान्न सुरक्षा उपलब्ध्कराते हैं। भविष्य में जन्म लेने वाली पीढ़ियों के लिए खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करते हैं। जीन बैंक उन पादपों के जीवित नमूने हैं जिन पर मानवता निर्भर करती है और वे जीन की भांति ही बहुमूल्य हैं।


मानव जाति के सुरक्षित भविष्य की दिशा में एक सामान्य शब्द जीन बैंक अपने में अपार संभावनाएँ समेटे हुए है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक सर्वेक्षण के अनुसार विकासशील देशों में प्रति पांच व्यक्ति में एक व्यक्ति कुपोषण का शिकार हैं। इनकी संख्या वर्तमान में लगभग 72.7 करोड़ हैं। 1.2 करोड़ बच्चों में लगभग 55 प्रतिशत कुपोषित बच्चे मृत्यु के मुंह में चले जाते हैं। भूख और कुपोषण से मरने वाले देशों की सूची के वैश्विक भूख सूचकांक में भारत को 88 देशों में 68वां स्थान मिला है। भारत में कुपोषण की समस्या कुछ क्षेत्रों में बहुत ज्यादा है। यही वजह है कि विश्व में कुपोषण से जितनी मौतें होती हैं, उनमें भारत का स्थान दूसरा है। वास्तव में कुपोषण बहुत सारे सामाजिक-राजनीतिक कारणों का परिणाम है।


जब भूख और गरीबी राजनीतिक एजेंडा की प्राथमिकता में नहीं होती तो बड़ी तादाद में कुपोषण सतह पर उभरता...


जब भूख और गरीबी राजनीतिक एजेंडा की प्राथमिकता में नहीं होती तो बड़ी तादाद में कुपोषण सतह पर उभरता है। भारत को ही देख लें, जहां कुपोषण गरीब और कम विकसित पड़ोसियों मसलन बांग्लादेश और नेपाल से भी अधिक है। यहां तक कि यह उप-सहारा अफ्रीकी देशों से भी अधिक है, क्योंकि भारत में कुपोषण का दर लगभग 55 प्रतिशत है, जबकि अफ्रीका में यह 27 प्रतिशत के आसपास है। सिर्फ भारत ही नहीं अपितु विश्व के कई देशों में खाने की भारी किल्लत है।


खाद्यानों की कमी और बढ़ती जनसंख्या ने विश्व में विकट स्थिति पैदा की है। लेकिन क्या सिर्फ कृषि उत्पाद बढ़ा कर और खाद्यान्न को बढ़ा कर हम भूख से अपनी लड़ाई को सही दिशा दे सकते हैं। यूं तो भारत विश्व में खाद्यान्न उत्पादन में चीन के बाद दूसरे स्थान पर पिछले दशकों से बना हुआ है। लेकिन यह भी सच है कि यहां प्रतिवर्ष करोड़ों टन अनाज खुले आसपास के नीचे सरकारी तथा निजी भंडारण में बर्बाद भी होता है।


सरकारी आंकड़े के अनुसार लगभग 58,000 करोड़ रुपये का खाद्यान्न भंडारण आदि तकनीकी के अभाव में नष्ट हो जाता है। कुल उत्पादित खाद्य पदार्थो में केवल दो प्रतिशत ही संसाधित किया जा रहा है। यह सब ऐसे समय हो रहा है जबकि छह साल से छोटे बच्चों में से 47 फीसदी कुपोषण के शिकार हैं। खाद्य समस्या का एक कारण भ्रष्टाचार भी है।


देश में फैला भ्रष्टाचार कैन्सर से घातक है। इसको समाप्त करने के लिए अब देश को इसके खिलाफ मिजाज बनाना चाहिए। ऐसा नहीं है कि भारत में खाद्य भंडारण के लिए कोई कानून नहीं है। 1979 में खाद्यान्न बचाओ कार्यक्रम शुरू किया गया था। इसके तहत किसानों में जागरूकता पैदा करने और उन्हें सस्ते दामों पर भंडारण के लिए टंकियां उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन इसके बावजूद आज भी लाखों टन अनाज बर्बाद होता है। ऐसा भी नहीं है कि सरकार ने भूख से लड़ने के लिए कारगर उपाय नहीं किए हैं।


देश में आज खाद्य सुरक्षा व मानक अधिनियम 2006 के तहत खाद्य पदार्थो और शीतल पेय को सुरक्षित रखने के लिए विधेयक संसद से पारित हो चुका है जिसके अंतर्गत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय बागवानी मिशन, नरेगा, मिड डे भोजन, काम के बदले अनाज, सार्वजानिक वितरण प्रणाली, सामाजिक सुरक्षा नेट, अंत्योदय अन्न योजना आदि कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, ताकि सभी देशवासियों की भूख मिटाने के लिए ही नहीं, बल्कि स्वतंत्र रूप से जीवनयापन के लिए रोजगार परक आय व पोषणयुक्त भोजन मिल सके।


भूख की वैश्विक समस्या को तभी हल किया जा सकता है जब उत्पादन बढ़ाया जाए। साथ ही उससे सम्बन्धित अन्य पहलुओं पर भी समान रूप से नजर रखी जाए। खाद्यान्न सुरक्षा तभी संभव है जब सभी लोगों को हर समय, पर्याप्त, सुरक्षित और पोषक तत्वों से युक्त खाद्यान्न मिले जो उनकी आहार संबंधी आवश्यकताओं को पूरा कर सके। साथ ही कुपोषण का रिश्ता गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी आदि से भी है। इसलिए कई मोर्चों पर एक साथ मजबूत इच्छाशक्ति तथा वितरण की उत्कृष्ट योजना का प्रदर्शन करना होगा। साथ ही बेहतर भंडारण और पोषणीय गुणवत्ता, बेहतर पशु कल्याण, बेहतर उत्पादन व गुणवत्ता, कीट व रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता, जल, तापमान और लवणीय चरम अवस्था के प्रति सहनशीलता को कार्यरूप में लाना होगा। अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, दो राष्ट्रों के बीच तथा विश्व युद्धों से सबसे अधिक संकट मानव जाति के समक्ष सामाजिक असुरक्षा के संकट के रूप में आता है।


वर्तमान समय में लाखों बच्चे, महिलायें तथा वृद्धजन युद्धों की विभीषिका से बुरी तरह पीड़ित हो रहे हैं। युद्धों की तैयारी तथा आतंकवाद से निपटने में काफी धनराशि व्यय हो रही है जिससे गरीब तथा विकासशील देशों की आर्थिक, पारिवारिक एवं सामाजिक व्यवस्था चरमराती जा रही है। इसलिए हमारा मानना है कि एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था का गठन शीघ्र करके खाद्यान्न जैसी विश्वव्यापी समस्याओं पर प्रभावशाली कानून बनाकर अंकुश लगाया जा सकता है।


युद्धों पर होने वाले व्यय को बचाकर उस धनराशि तथा मानव संसाधन से रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वस्थ तथा सुरक्षा से परिपूर्ण जीवन प्रदान किया जा सकता है। बंजर भूमि को कृषि के योग्य उपजाऊ बनाने की आवश्यकता है। इस हेतु सुरक्षा से मानव संसाधनों को समझदारीपूर्वक बचाकर उसे बुनियादी चीजों के निर्माण में लगाने की आवश्यकता है।


हमारा पूर्ण विश्वाास है कि मानव जाति जिस समय का युगों से प्रतीक्षा कर रही थी वह समय शीघ्र आयेगा जब सारी दुनियाँ एक विश्व परिवार का स्वरूप धारण कर लेगी। वास्तव में यह वही समय होगा जब भारतीय संस्कृति के आदर्श 'वसुधैव कुटुम्बकम्' के प्रावधानों के आधार पर एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था की स्थापना होगी।


इस प्रकार सारे विश्व में एकता एवं शांति की स्थापना होेगी। दो या दो से अधिक देशों के बीच होने वाले युद्ध तथा आतंकवाद की समाप्ति होगी। इस प्रकार सम्पूर्ण विश्व में महानतम विश्व शांति आ जायेगी। विश्व के बच्चों, युवाओं, महिलाओं तथा वृद्धजनों का सारा जीवन खुशहाली, उल्लास, शान्ति तथा एकता से भर जायेगा। विश्व में खाद्यान्न की कमी नहीं है।


किसी देश में गेहूँ की उपज इतनी अधिक होती है कि उसे समुद्र में बहा दिया जाता है। किसी देश में पेट्रोल-डीजल का उत्पादन बहुत अधिक होता है। सारे विश्व को एक कुटुम्ब की भांति मानते हुए एक विश्व व्यवस्था के अन्तर्गत विश्व के जिस देश में जिस खाद्यान्न की कमी हो उसे वहाँ भेजा जा सकता है। इस प्रकार एक विश्व परिवार की तरह सही वितरण सिस्टम को अपनाकर धरती के प्रत्येक व्यक्ति को सभी आवश्यक चीजें उपलब्ध करायी जा सकती है।  मानवीय, सामाजिक तथा क्रान्तिकारी विचारक तथा विश्व परिवर्तन मिशन के संस्थापक विश्वात्मा भरत गांधी का पूरा विश्वास है कि भूख से कुपोषित होकर मर रहे विश्व के करोड़ों लोगों को बचाने की एकमात्र अचूक दवा वोटरशिप अधिकार कानून को लागू करने की है। इस दिशा में वह सारे देश में एक लम्बे समय से घूम-घूमकर विचारशील लोगों के इस मानवीय अभियान से जोड़ रहे हैं। वोटरशिप अधिकार कानून को बनाने के लिए भारत सरकार को सबसे पहले पहल करके विश्व के समक्ष एक मिसाल प्रस्तुत करनी चाहिए। सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में इस कानून के बनने से सारे विश्व को इस दिशा में कदम उठाने की अभूतपूर्व प्रेरणा मिलेगी।


वर्तमान समय में देश के वोटरों की एकता जरूरी है। सभी विचारशील वोटरों को एक साथ मिलकर यूरोपियन यूनियन की तरह दक्षिण एशियाई सरकार बनाने के लिए भारत सरकार से मांग करनी चाहिए। दक्षिण एशियाई सरकार के बनने से वोटरशिप की धनराशि छः हजार से बढ़कर रूपये बारह हजार प्रतिमाह हो जायेगी।


दुनिया के मासूम बच्चों को भूख तथा युद्धों की विभीषका से मुक्त कराने का सशक्त अधिकार देश के असली मालिक वोटरों के हाथ में हैं। वोटर को अपने वोट की ताकत की कीमत को जानना चाहिए। वोटर की सेवा ही सरकार तथा नौकरशाही की पहली तथा अन्तिम जिम्मेदारी है। आर्थिक युग में वोटरशिप सबसे बड़ा मुद्दा बनना चाहिए। परिवार में पैसा आने से ही शान्ति तथा एकता सुनिश्चित रहती है। विश्व में बढ़ते अपराधों तथा हिंसा के पीछे बेरोजगारी तथा आर्थिक तंगी ही प्रमुख कारण है। 



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