विश्व की अनमोल धरोहर हैं ''वृद्धजन''
पारिवारिक एकता का ज्ञान देने की जिम्मेदारी परिवार तथा स्कूल निभाये:- विश्व में बुजुर्गों का परम स्थान है लेकिन तेजी से बदलते पारिवारिक तथा सामाजिक परिवेश में उनका स्थान लगातार नीचे गिरता जा रहा है। विश्व भर में बढ़ रही घोर प्रतिस्पर्धा से नैतिक तथा पारिवारिक एकता के मूल्यों का पतन होता जा रहा है। बुजुर्गों पर इसका प्रभाव ज्यादा है। जीवन के अंतिम पड़ाव में वह बेटे व परिवार के सुख से वंचित हो रहे हैं। इस पर जल्द नियंत्रण नहीं किया गया तो स्थिति भयावह हो जाएगी। हमारा माानना है कि वर्तमान परिवेश में बच्चों में बुजुर्गो के प्रति स्नेह व लगाव पैदा करना बहुत जरूरी है। वर्तमान समय में विदेशों में पढ़ने व अधिक धन कमाने के लिए, वहीं नौकरी करने तथा वहाँ स्थायी रूप से बसने वाले युवाओं की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी होती जा रही है। यह अत्यन्त ही चिंतनीय है कि आधुनिक सुख-सुविधाओं की चाह में ऐसे युवा स्वयं तो विकसित देशों के बड़े शहरों में रहना चाहते हैं लेकिन अपने मां-बाप को ओल्ड ऐज होम तथा गांव-कस्बे में रखना चाहते हैं और बेटा जब अपने बूढ़े मां-बाप को अपने से दूर रखेगा तो उनकी सेवा कैसे हो सकेगी? वास्तव में बच्चों को यह बताया जाए कि बुजुर्गों की सेवा से ही जीवन सफल हो सकता है। समाज तथा विशेषकर स्कूलों के लिए यह एक चुनौती है। इसके लिए मानवीय सूझबूझ से भरी व्यापक योजना बनाने की जरूरत है।
गुणों को ग्रहण करने की सबसे सर्वश्रेष्ठ अवस्था बचपन है:- वृद्धजनों को सम्मान देने के लिए प्रतिवर्ष ग्रेण्ड पेरेन्ट डे की शुरूआत की है। जिसमें दादा-दादी तथा नाना-नानी को विशेष रूप से आमंत्रित करके सम्मानित किया जाता है। पारिवारिक एकता विश्व एकता की आधारशिला है। संयुक्त परिवार में रहते हुए बचपन के वे दिन हमें आज भी याद आते हैं, जब हम दादा-दादी या नाना-नानी की गोद में सिर रखकर उनकी मीठी कहानियां सुनते-सुनते सो जाते थे। बाल्यावस्था का समय ऐसा होता है, जिसमें बच्चों में जिस तरह के संस्कार डाल दिये जाते हंै, वैसा ही उनका व्यक्तित्व निर्मित हो जाता है। और फिर जिन्दगी भर वही व्यक्तित्व उनकी सफलता व असफलता का मापदंड बन जाता है। इसलिए आज आवश्यकता इस बात की है कि आने वाली पीढ़ी टी.वी., इन्टरनेट व कार्टून फिल्मों से ज्यादा अपने दादा-दादी, नानी-नानी व घर के सभी बुजुर्गों को महत्व दें। अगर ऐसा होगा तो आने वाला समय स्वर्णिम, उज्जवल व निश्चिंतता का होगा वर्ना विज्ञान व विकास भी विनाश के समान साबित हो जाएगा।
बच्चों को आज संस्कार कौन दे रहा है, टी.वी. या दादा-दादी, नाना-नानी?:- आजकल के दौर में जब महिलाएं भी घर से बाहर काम करने जाती हैं और बच्चे घर में अकेले होते हैं तो ऐसे में अगर दादा-दादी व नाना-नानी का साथ मिल जाए तो वह खुद को सहज महसूस तो करते ही हैं, इसके अलावा उन्हें अपने परिवार की उपयोगिता भी भली-भांति समझ में आती है। अगर दादा-दादी और नाना-नानी का साथ हो तो बच्चे और अधिक भावुक और समझदार हो जाते हैं। इस प्रकार दादा-दादी और नाना-नानी बच्चों को केवल लाड़-प्यार ही नहीं करते बल्कि उनके नैतिक और मानसिक विकास को भी बढ़ावा देते हैं। परिवार में बुजुर्गों के अभाव में जो बालक अपना अधिकांश समय टी.वी. कम्प्यूटर, इन्टरनेट आदि वैज्ञानिक उपकरणों के साथ व्यतीत करते हैं उनका मन-मस्तिष्क हिंसक गेम, फिल्में व कार्टून के प्रभाव से नकारात्मकता से भर जाता है और वे असामाजिक कार्यों में संलग्न होकर परिवार एवं समाज के वातावरण को दूषित ही करते हैं।
वृद्धजनों को पूरा सम्मान तथा सामाजिक सुरक्षा देना समाज का उत्तरदायित्व है:- वर्तमान भौतिक युग में आज सारे विश्व में वृद्धजनों के प्रति घोर उपेक्षा बरती जा रही हैं। विकसित देशों ने इस समस्या से निपटने के लिए सरकार की ओर से वृद्धजनों के लिए ओल्ड ऐज होम स्थापित किये हैं। जिसमें वृद्धजनों के खाने-पीने, बेहतर आवासीय सुविधायें, आधुनिक चिकित्सा, स्वस्थ मनोरंजन, खेलकूद, ज्ञानवर्धन हेतु लाइब्रेरी आदि-आदि सब कुछ उपलब्ध कराया गया है। साथ ही वृद्धजनों को सम्मानजनक जीवन जीने के लिए अच्छी खासी पेन्शन भी सरकार की ओर से दी जाती है। हमारे देश में वृद्धजनों के लिए ओल्ड ऐज होम की
सुविधायें नहीं हैं। सीनियर सिटीजन को दी जाने वाली पेन्शन की राशि भी बहुत कम है। इस दिशा में सरकार तथा कॅारपोरेट जगत को सार्थक कदम उठाकर वृद्धजनों को सम्मानजनक जीवन जीने के अवसर उपलब्ध कराने के लिए आगे आना चाहिए। साथ ही वृद्धजनों के अनुभव का लाभ उनके ज्ञान एवं रूचि के अनुसार समाज के विकास में लेने के लिए योजना बनानी चाहिए ताकि वे नौकरी तथा व्यवसाय से अवकाश प्राप्त करने के बाद भी सक्रिय, प्रसन्न, उत्साही, सुरक्षित एवं स्वस्थ रह सके। क्योंकि कहा गया है कि गति में ही शक्ति है। ब्रन एनर्जी टू क्रिएट एनर्जी अर्थात और अधिक नई ऊर्जा को ़प्राप्त करने के लिए पहले संचित ऊर्जा को खर्च करना पड़ता है।
संयुक्त परिवार वसुधैव कुटुम्बकम् की सीख देने की प्राथमिक पाठशाला है:- प्राचीन काल में हमारे देश में संयुक्त परिवारों में वृद्धजनों को पूरा सम्मान, सुरक्षा तथा देखभाल मिलती थी। लेकिन उद्देश्यहीन शिक्षा तथा भौतिकता की अंधी दौड़ ने हमारे देश में भी संयुक्त परिवारों की श्रेष्ठ परम्परा को बुरी तरह बिखेर दिया है। विशेषकर शहरों में एकल परिवार का रिवाज तेजी से बढ़ रहा है। माँ की ममता तथा करूणा से भरी बचपन की एक बड़ी ही मार्मिक कहानी मुझे याद आ रही है - सांसारिक स्वार्थ में डूबा एक व्यक्ति अपनी बूढ़ी माँ का दिल निकालने के लिए हाथ में छुरी लेकर गया और माँ को मारकर उसका दिल हाथ में
लेकर खुशी-खुशी चला। रास्ते में उसे जोर की ठोकर लगी वह गिर पड़ा। छिटककर हाथ से गिरा माँ का कलेजा बेटे की तकलीफ से तड़प गया। माँ के दिल से आह निकली मेरे प्यारे बेटे चोट तो नहीं आयी। माँ तो सदैव अपने बच्चों पर जीवन की सारी पूँजी लुटाने के लिए लालयित रहती है। मोहम्मद साहब ने कहा था कि अगर धरती पर कहीं जन्नत है तो वह माँ के कदमों में है।
माता-पिता धरती पर परमात्मा की सच्ची पहचान है:- इस धरती पर हमारे भौतिक शरीर के जन्मदाता माता-पिता संसार में सर्वोपरि हैं। हमें उनका सम्मान करना चाहिए। जिन मां-बाप ने अपना सब कुछ लगाकर अपनी संतानों को योग्य बनाया, वे संतानें जब बड़े होकर अपने वृद्ध मां-बाप की उपेक्षा करती हैं तो उन पर क्या बीतती है? इस पीड़ा की अभिव्यक्ति कोई भुग्तभोगी ही भली प्रकार कर सकता है। हमारा मानना है कि वृद्धजनों का मूल्यांकन केवल भौतिक दृष्टि से करना
सबसे बड़ी नासमझी है। वृद्धजन अनुभव तथा ज्ञान की पूंजी होते हैं। बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह का कहना है कि जब हमारे सामने माता-पिता तथा परमात्मा में से किसी एक का चयन करने का प्रश्न आये तो हमें माता-पिता को चुनना चाहिए। माता-पिता की सच्चे हृदय से सेवा करना परमात्मा की नजदीकी प्राप्त करने का सबसे सरल तथा सीधा मार्ग है। साथ ही मानव जीवन का परम लक्ष्य अपनी आत्मा का विकास करने का श्रेष्ठ मार्ग भी है। हमारे शास्त्र कहते हैं कि जिस घर में माता-पिता का सम्मान होता है उस घर में देवता वास करते हैं। माता-पिता धरती के भगवान है। माता-पिता इस धरती पर परमात्मा की सच्ची पहचान है। जिस परिवार में सभी परिवारजन मिल-जुलकर प्रार्थना करते हैं वह परिवार भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक क्षेत्र में बेहद उन्नति करता है।
बुढ़ापा अभिशाप नहीं बल्कि यह मानव जाति के लिए एक वरदान है:- सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि वृद्धावस्था में व्यक्ति की कार्यक्षमता कम हो जाती है और वह किसी काम का नहीं रहता। वृद्ध व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक श्रम वाले कार्य न सौंपे जाने के पीछे शायद यही वजह है। वृद्धावस्था तो उम्र का वह दौर होता है जिस तक आते-आते व्यक्ति अपनी पूरी जिंदगी का सार या निचोड़ अपने पास संजोकर रख चुका होता है। यह तो खुशी और संतुष्टि का दुर्लभ दौर है। वृद्धावस्था लंबी प्रतीक्षा के बाद संतोष का मीठा फल चखने का दौर है। उम्र भर की स्मृतियों, अनुभवों, सुख-दुख, सफलता- असफलता आदि की अमूल्य और अकूत पंँूजी का नाम ही वृद्धावस्था है अतः इसे किसी भी प्रकार निरर्थक नहीं कहा जा सकता। कुल मिलाकर हम कह सकते है कि बुढ़ापा अभिशाप नहीं बल्कि यह मानव जाति के लिए एक वरदान है। अतः हमें अपने बढ़े-बुढ़ों की उपेक्षा न करके उनका सम्मान करना चाहिए। वे हमारे लिए स्नेह, सम्मान, श्रद्धा, अनुभव और ज्ञान की पूँजी हंै। वृद्धजनों अपने अनुभवों को भावी पीढ़ियों के लिए सहेज कर रखते हैं:- प्रायः घरों में माता-पिता तथा स्कूलों में शिक्षक बच्चों को विभिन्न प्रकार की बातें समझाते हैं। वे कई बार अपनी बात कहने और समझाने के लिए विभिन्न प्रकार के सूत्र-वाक्यों का प्रयोग भी करते हैं। परंतु हमारी गलती यही रहती है कि हम उनकी नसीहतों और सूत्र-वाक्यों का अर्थ समझने का प्रयास ही नहीं करते। कई बार हम उनके मुख से 'जैसा बोओगे वैसा काटोगे' तथा 'जहाँ चाह, वहाँ राह' जैसी विभिन्न उक्तियों को नसीहतों के रूप में सुनते हैं, लेकिन उनकी बात का मर्म हम तब ही समझ पाते हैं, जब हमें ठोकर लगती है। वास्तविकता तो यह है कि इस प्रकार के मुहावरे और कहावतेें हमारे पूर्वजों या बड़े-बूढ़ों के अथाह अनुभव भंडार से मिले कुछ अनमोल मोती है, जो उन्होंने जीवन को स्वीकार तथा समझकर अपने अनुभवों को भावी पीढ़ियों के लिए सहेज कर रखे
होते हैं।
शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिससे विश्व में परिवर्तन लाया जा सकता है...
शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिससे विश्व में परिवर्तन लाया जा सकता है:- नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित दलाई लामा के अनुसार सारी मानवता में विश्व समाहित है। अर्थात मानवता सबसे कीमती चीज है। महात्मा गांधी ने कहा था कि विश्व संकट में है उसका उत्तर हमने परमाणु बम के रूप में खोजा है। यदि हम वास्तव में युद्धों को समाप्त करना चाहते हैं तो उसकी शुरूआत हमें बच्चों की शिक्षा से करनी पड़ेगी। नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित नेल्शन मंडेला ने कहा है कि शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिससे विश्व को बदला जा सकता है। महात्मा गांधी के आध्यात्मिक शिष्य विनोवा भावे ने मानव जाति को जय जगत का नारा दिया था। अर्थात किसी एक देश की नहीं वरन् सारे विश्व की जय हो। पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल जी ने कहा था कि आप मित्र बदल सकते हैं, पर पड़ोसी नहीं। उन्होंने अपने गीत के माध्यम से संदेश दिया था कि हम जंग न होने देंगे, विश्व शान्ति के हम साधक, जंग न होने देंगे। विशेषकर वृद्धावस्था में संगीत से प्रेम अत्यधिक आत्मिक ऊर्जा प्रदान करता है। महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के अनुसार आत्मिक रूप से कमजोर व्यक्ति बदला लेता है, मजबूत व्यक्ति क्षमा करता है तथा बुद्धिमान व्यक्ति उपेक्षा करता है। वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग ने कहा है कि इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन अज्ञान नहीं है, यह ज्ञान का भ्रम है।
विश्व पटल पर भारत को गौरवान्वित किया:- हमें गर्व है अपने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी पर जिन्होंने 27 सितम्बर को एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वंे सत्र के अपने भाषण से भारत का नाम विश्व में गौरवान्वित किया है। पीएम मोदी ने वल्र्ड लीडर की तरह अपना संदेश दुनिया को देने का सफल प्रयास किया। भारत ने हमेशा ही विश्व को बुद्ध दिए हैं, युद्ध नहीं। भारत हमेशा से विश्व शांति और एकता का प्रचारक रहा है। भारत जन-कल्याण से जग-कल्याण में विश्वास करता है। उन्होंने ये भी कहा कि विश्व के सबसे बड़े गणराज्य भारत ने प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाकर पर्यावरण संरक्षण में बड़ा कदम उठाया है और विश्व के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। दुनिया के 2.5 अरब बच्चों और आगे आने वाली पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य के लिए विश्व के सभी प्रभुसत्ता सम्पन्न राष्ट्रों की बैठक भारत में बुलाकर एक वैश्विक लोकतंत्र (विश्व संसद) की स्थापना करने की अपील करते हैं। विश्व नेताओं की इस बैठक का एजेंडा विश्व संसद के गठन के माध्यम से दुनिया की एक नयी राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था तैयार करना चाहिए ताकि संसार के 2.5 अरब बच्चों और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित किया जा सके।
एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था के गठन से सारी मानव जाति का जीवन खुशहाल होगा:- हमारा पूर्ण विश्वाास है कि मानव जाति जिस समय का युगों से प्रतीक्षा कर रही थी वह समय शीघ्र आयेगा जब सारी दुनियाँ एक विश्व परिवार का स्वरूप धारण कर लेगी। वास्तव में यह वही समय होगा जब भारतीय संस्कृति के आदर्श 'वसुधैव कुटुम्बकम्' तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के प्रावधानों के आधार पर एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था की स्थापना होगी। इस प्रकार सारे विश्व में एकता एवं शांति की स्थापना होेगी। दो या दो से अधिक देशों के बीच होने वाले युद्ध तथा आतंकवाद की समाप्ति होगी। इस प्रकार सम्पूर्ण विश्व में महानतम विश्व शांति आ जायेगी। विश्व के बच्चों, युवाओं, महिलाओं तथा वृद्धजनों का सारा जीवन खुशहाली,
उल्लास, शान्ति तथा एकता से भर जायेगा। - डा0 जगदीश गाँधी
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें