नियमित प्रकाशन के पन्द्रह वर्ष... 

एक पागलपन से कम नजर नहीं आता नियमित प्रकाशन 

 

किसी भी राष्ट्र का स्वरूप दिव्यदर्शन और उसके शक्तिशाली संगठन व प्रचारकों के माध्यमों पर टिका का होता है | यह  ठीक है, कि हम और हमारे संगठन प्रचार के बल पर विश्व में अपनी विशेष पहचान व भागीदारी चाहते हैं |


आज सरकारी बंदिशों के चलते नया प्रकाशन शुरू करना इतना आसान नहीं है | इसके लिए एक अच्छी पूंजी चाहिए जो कि बिना लाभ की कामना के वर्षों फंसी रहे | प्रकाशन कार्यालय चाहिए, प्रेस व्यवस्था भी चाहिए, प्रकाशन को नियमित चलाने के लिए आर्थिक योगदान व सहयोग देने वाले पाठकों और संवाददाताओं का समर्पित ग्रुप चाहिए | ध्यान देने वाली बात यह है कि जब कोई प्रकाशन प्रारंभ किया जाता है, तो सरकारी नियमों के अनुसार कुछ आवश्यक नियम पूरे ही करने पड़ते हैं, तभी सरकारी सुविधा मिलती है | इस खानापूर्ति व जांच के चक्कर में कई बार देरी होती है कभी-कभी तो सरकारी मशीनरी द्वारा जानबूझकर तंग किया जाता है | यदि यह कार्य  एक व्यक्ति द्वारा किया जाता है तो वह निर्विवाद व निष्पक्ष होना चाहिए अन्यथा एक दूसरे की टांग खिंचाई में संगठन का प्रचार माध्यम बनते बिगड़ते रहते हैं |


यह एक कड़वी सच्चाई है कि विरासत में हमारे पास स्थाई कुछ नहीं है | हर बार कुआं खोदो और हर बार पानी पियो!जहां तक इस पत्र-पत्रिकाओं की बातें करें तो कुछ विडले ही इस क्षेत्र में आते हैं,जिन पर अपने परिवार का दायित्व भार हावी होता है..साथ में रोजी-रोटी की फिक्र ना आम आदमी की भावनाओं की कुणित कर रखा है |


चारों ओर स्वार्थ ही स्वार्थ दिखाई देता है इसलिए समाचार पत्र पत्रिकाएं स्थायित्व नहीं हो पाती | पूंजीपति व्यवस्था का आधिपत्य साफ साफ दिखाई देता है | ऐसी स्थिति में किसी पत्र या पत्रिका को नियमित निकालना एक पागलपन से कम नजर नहीं आता | लेकिन कुछ ऐसे निष्ठावान लोग भी होते हैं जो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हालातों से जूझने की क्षमता रखते हैं | रास्ते में आने वाली किसी भी बाधा से नहीं डरते और अपनी मंजिल की ओर बढ़ने की दिशा में सदैव तत्पर रहते हैं | इसी भावना, उद्देश्य और दृढ़ निश्चय के साथ हम सभी ने राष्ट्र की बात समाचार का कार्य अपने हाथों में ले लिया | यधपि इसके रास्ते में आने वाली कठिनाइयों का पूर्वा आभास था किंतु कुछ चंद्र मित्रों प्रतिनिधियों एवं जनसहयोगयो  का सहयोग प्राप्त न हुआ होता तो इस कार्य को आधे में ही छोड़ दिया होता | लेकिन मैं आभारी हूं विशेष रूप से उन मित्र जनों का, जिन्होंने हर मोड़ पर साथ देकर इस समाचार को आज आपके सामने नियमित प्रकाशन को पन्द्रह वर्ष में प्रस्तुत किया |



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