घर बाहर सब भट्ठी हुइ गै...
विनय विक्रम सिंह
पी एम टू अक्सीजन भरि गै,
हवा 'अचक्कै जर भुन सरि गै।१।
बहै ज़हर सी काली काली,
साँसन 'करिखा कोइला भरि गै।२।
'लैब-रैट जस मनई ह्वेई गै,
'डगदरवन कै झोरिया भरि गै।३।
'खूँटा 'पगही राह निहारे,
'गाई-गोरु गायब हुइ गै।४।
'लरिका 'बिल्लावैं मुँह झूरे,
'नैनू दही दुकानी चढ़ि गै।५।
'ल्वाहा पलंगा 'अरदावन भै,
चरपइयन 'खटकिरवा मरि गै।६।
'धन्नी-थून्हीं छपरा बिलि गैं,
शहरन ख़ातिन 'बिरवा जरि गै।७।
'गुलहर खो-खो अउर 'अखारा,
'गिट्टी-फोर 'कड़क्को भुलि गै।८।
मोबाइल मा उलरै कूदैं,
लरिकन रोग मुटापा बढ़ि गै।९।
'घूर पाँस किहानी हुइ गइ,
युरिया 'देहीं हाँड़ी भरि गै।१०।
बरखा 'र्रवावै इक दुइ आँसू,
धरती चटकी पाञ्जर जरि गै।११।
गाड़ी बढ़ि गै, सइकिल घटि गै,
हारि बिमारी 'सक्कर बढ़ि गै।१२।
पल्यूसन चौतरफा अँटि गा,
जिनगी उमिर बुढापा घटि गै।१३।
पानी विसधर आर-ओ घर घर,
नदियन सगरे नाला भरि गै।१४।
ए-सी लटके खिड़की ढाँपे,
घर बाहर सब भट्ठी हुइ गै।१५।
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