चरणों नित आस जपूँ तिस के...
मन प्रीत सजी बतियाँ रस के....चितचोर
अभिलाषा विनय...
मन प्रीत सजी बतियाँ रस के,
जपती मनके हिय में उस के।१।
लय तान लहे लहके बहके,
नव नेह बनी कलियां रस के।२।
अटके ठिठके लखते मुड़ के,
मन भाव अनूठ रहे सिसके।३।
हिय आकुल हाल कहे किससे,
सखि बात लगे न कभी जिस के।४।
बसते - रचते, हँसते - नचते,
वह श्यामल गात छुपा रिस के।५।
सखि जाय कहो उस चंचल से,
चरणों नित आस जपूँ तिस के।६।
सुधि लेत नहीं जियरा हर के,
चितचोर ठगी करता रस के।७।
बन ठूँठ खड़ी बिरहा बन के,
सुधि ले न रहे छलिया हँस के।८।
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