...वो जो साथी बन जाते अपने
स्वार्थ में अपने...
-सुनील कुमार गुप्ता
पग-पग कर अपमान अपनो का,
कैसे-जीवन में- वो साथी बन जाते।
कैसे-जीवन में- वो साथी बन जाते।
साथी साथी कह कर भी, साथी उनको- भूल जाते।
मैं-ही-मैं बसता जो, तन- मन में साथी- कैसे-संग निभाते?
भूल कर संबंधो को वो तो, स्वार्थ में अपने- संबंध नये बनाते।
सत्य नहीं जीवन में उनके, फिर भी साथी- सत्यवादी कहलाते।
पग-पग कर अपमान अपनो का, कैसे-जीवन में- वो साथी बन जाते...|
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