बंदिशों का कड़ा...
सुरेंद्र सैनी...
है बड़ा खुदगर्ज जमाना
तू ना ऐसे लड़खड़ा
आरजू में रही वफा
है सफर बहुत बड़ा
हुआ ये फूल का मौसम
तू काटो पर ही अड़ा
इतनी खुमारी तो ना रही
तुझ पर नशा कैसे चढ़ा
कैसे खुलकर गुफ़तगु हो
मुझ पर बंदिशों का कड़ा
तुकबंदी में ना फंस "उड़ता"
अपना लफ्जों का दायरा बढ़ा
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