विश्व जनसंख्या दिवस पर विशेष लेख

लोक कल्याण की मिसाल -संन्यासी जीवन 

दृष्टिकोण
प्रदीप कुमार सिंह
विश्व जनसंख्या दिवस मनाने की शुरूआत 11 जुलाई 1989 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की संचालक परिषद् द्वारा हुई थी। दरअसल 11 जुलाई 1987 तक वैश्विक जनसंख्या का आंकड़ा 5 अरब के भी पार हो चुका था, वैश्विक हितों को ध्यान में रखते हुए इस दिवस को प्रतिवर्ष 11 जुलाई को मनाने का निर्णय लिया गया।


तेजी से बढ़ती दुनिया की आबादी ने हमारे सामने कई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। वर्तमान में दुनिया की आबादी 780 करोड़ पहुंच गई है जो हर दिन, हर घंटे, हर सेकंड बढ़ती जा रही है। बढ़ती आबादी से जुड़ी समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने के मकसद से ही हर साल यह दिवस मनाया जाता है।
वर्तमान में सोशल मीडिया जैसे सशक्त माध्यम की पहुंच तथा पकड़ प्रत्येक व्यक्ति तक है। जनसंख्या वृद्धि के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के लिए हमें सोशल मीडिया का सकारात्मक उपयोग करना चाहिए। इसके साथ ही जनसंख्या वृद्धि के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने में विभिन्न धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, शैक्षिक, एनजीओ जैसे संस्थानों का अधिकतम सदुपयोग करना चाहिए। इन संस्थानों के माध्यम से जनसंख्या वृद्धि पर आधारित जागरूकता रैली, सभा, गोष्ठी,
प्रतियोगिता, रोड शो, नुक्कड़ नाटक आदि समाजोपयोगी कार्यक्रमों के आयोजन करना अत्यधिक सहायक हैं।
विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाले टाॅप टेन देश इस प्रकार हैं - (1) चीन, (2) भारत, (3) अमेरिका, (4) इंडोनेशिया, (5) ब्राजील, (6) पाकिस्तान, (7) बांग्लादेश, (8) नाइजीरिया, (9) रूस तथा (10) जापान। भारत की आबादी लगभग 129 करोड़ है। यह चीन के बाद दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है और विभिन्न अध्ययनों से यह पता चला है कि सन् 2025 तक भारत चीन से भी आगे निकलकर विश्व का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा। जनसंख्या पर प्रभावी रोक
लगाने के मामले में चीन का उदाहरण सामने रखकर ही हमें आगे के लक्ष्य तय करने होंगे। एक दशक से भी अधिक समय से चीन की जनसंख्या स्थिर बनी हुई है, जिसका प्रमुख कारण यही है कि चीन सरकार ने औसत मृत्यु दर के आधार पर ही जन्मदर को भी नियंत्रित करने की व्यवस्था बनाते हुए छोटा परिवार रखने वाले लोगों के लिए विशेष सरकारी लाभों का प्रावधान किए, जिसके सार्थक परिणाम सामने आए हैं।
संसार के अनेक महापुरूषों ने आजीवन अविवाहित रहकर अपने-अपने क्षेत्र में मानव सेवा के उच्चतम स्थान प्राप्त किये हंै जिसमें भारतीय महापुरूषों में (1) महर्षि दयानंद सरस्वती, (2) स्वामी विवेकानंद, (3) माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर 'गुरूजी', (4) सेवा एवं करूणा की मसीहा मदर टेरेसा, (5) भारत रत्न डा. एपीजे अब्दुल कलाम, (6) योग ऋषि स्वामी रामदेव जी (7) भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेई, (8) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, (9) योगी आदित्यनाथ आदि अनेक हस्तियां हैं।
वेदमूर्तिं तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा स्थापित अखिल विश्व गायत्री परिवार, हरिद्वार द्वारा संचालित देव संस्कृति विश्वविद्यालय तथा पतजंली योग पीठ, हरिद्वार में स्वामी रामदेव व आचार्य बालकृष्ण के मार्गदर्शन में संस्कृति, देश, धर्म, योग तथा आयुर्वेद के लिए अधिकांश आजीवन अविवाहित रहकर अनेक युवक-युवतियाँ संन्यासी के रूप में तैयार हो रहे हैं। हमारे मनीषियों ने व्यक्तित्व के विकास का रहस्य समझाते हुए यही उद्घोष किया था कि सम्पूर्ण वसुधा ही हमारा परिवार है। भारत के ये ऐसे बिरले संन्यासी हैं जिन्होंने भारतीय संस्कृति के आदर्श 'वसुधैव कुटुम्बकम्' (सारी वसुधा कुटुम्ब है) को तथा 'धरती हमारी माता है तथा हम उसकी संतान हैं' को अपने जीवन का ध्येय बनाया है। धरती के प्रत्येक प्राणी की पीड़ा से द्रवित होकर इन्होंने अपने जीवन को झांेक दिया। समझदारी कहती है कि जो भी व्यक्ति धरती पर जन्म ले चुके हंै
उसके लिए रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा सुरक्षा उपलब्ध कराना देश तथा विश्व के प्रत्येक नागरिक का परम दायित्व बनता है। तब तक हम इस दायित्व को पूरा न कर पाये तब तक नई मानव संतान को जन्म देने के पहले हमें गहराई से इस विषय में मानवीय ढंग से विचार कर लेना चाहिए।
हमारा सामना अक्सर ऐसे बच्चों से होता ही रहता है जो किसी बाल आश्रम, सुधारगृह, अनाथालय में रहते हो और किसी तरह बचपन में ही उखड़ गई जिन्दगी की पटरी को फिर से जमाने की कोशिश कर रहे हों। इसी के समानान्तर कुछ ऐेसे बच्चे भी हैं, जो किसी व्यक्ति, निःसंतान दम्पति द्वारा गोद ले लिए गए हो और सुरक्षित वातावरण में पल-बढ़ रहे हो। उल्लेखनीय है कि हमारे देश में अनेक महिलाएं हैं, जो अकेली रहती हैं, विवाह नहीं करना चाहतीं लेकिन वे बच्चे गोद लेना चाहती हैं
ताकि उनके अंदर जो वात्सल्य, प्रेम और मातृवत् भावनाएं हैं उन्हें प्रकट करने का अवसर मिल सके। 
वर्तमान समय में युवा पीढ़ी को साहस करके अनाथालय में पल रहे बच्चों को गोद लेने की मिसाल भी प्रस्तुत करनी चाहिए। ऐसा करने से अनाथ बच्चों को माता-पिता मिल जायेंगे तथा माता- पिता को संतान। एक समाचार के अनुसार बिहार प्रान्त के भागलपुर शहर की सड़कों के किनारे फेंक दिए गए काजल, मुन्नी, लक्ष्मी, निकिता और बबलू अब विदेशी नागरिक बन गये हैं। वे अब अलग- अलग देशों में पल रहे हैं। इन्हें जन्म देने वालों ने इन्हें सिर्फ इसलिए सड़क किनारे फेंक दिया था, क्योंकि इनमें चार बेटियां थीं, तो एक बबलू गंभीर बीमारी से पीड़ित था। पुलिस ने इन्हें लावारिस हालत में सड़क के किनारे से बरामद किया था। बाद में सभी को औपचारिकताएं पूरी करने के बाद रामानंदी हिन्दू आश्रम को सौंप दिया, तभी से ये बच्चे इसी आश्रम में पल बढ़ रहे थे।


अब ये बच्चे अनाथ नहीं कहें जाएंगे। इन्हें विदेशी मां-बाप मिल गए हैं। अनाथालय के संचालकों के अनुसार, यहां पल रही काजल भारती को बेल्जियम, मुन्नी भारती को इटली, लक्ष्मी भारती को यूएसए, निकिता भारती को फ्रांस और बबलू भारती को इटली के दंपति ने गोद लेने के लिए आनलाइन आवेदन किया था। 
अंतर्राष्ट्रीय दत्तक नियमों के मुताबिक दुनिया में कोई भी पालक किसी भी देश के बच्चों को गोद ले सकता है। विदेशी दंपती को अंतर्राष्ट्रीय एडाप्शन एजेंसी के माध्यम से आवेदन करना होता है। केंद्र सरकार की केंद्रीय दत्तक संसाधन प्राधिकरण की ओर से इसके लिए गाइडलाइन बनाई गई है जिसके तहत यह प्रक्रिया की जाती है। हमारे देश में बहुत-सी संस्थाएं हैं जो इस दिशा में कार्य कर रही हैं और ऐसे बच्चों को सम्मानपूर्वक जिंदगी व्यतीत करने का अवसर प्रदान करने की कोशिश कर रही हैं लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है। मिसाल के तौर पर 'बचपन बचाओ आन्दोलन', 'एस.ओ.एस. विलेपेज आॅफ इंडिया', 'मिशनरीज आॅफ चैरिटी' आदि जैसी संस्थाएं देश में बहुत कम हैं। 
लापता बच्चों को खोजने के लिए सोशल मीडिया और इंटरनेट के इस्तेमाल पर नोबल पुरूस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के साथ अपने विचारों का आदान-प्रदान किया। प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि उन्होंने विश्व की पहली ''चिल्ड्रेन यूनिवर्सिटी'' गांधीनगर, गुजरात में स्थापित की है। विश्वविद्यालय की स्थापना चिल्ड्रेन्स यूनिवर्सिटी एक्ट, 2009 के अन्तर्गत की गई थी और यह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से संबद्ध है। 
विश्वविद्यालय बच्चों के विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए सही वातावरण और प्रणाली बनाने के लिए अनुसंधान, शिक्षा, प्रशिक्षण और विस्तार सेवाएं प्रदान करता है और भारत में एकमात्र बाल विश्वविद्यालय है। बाल पीढ़ी के जीवन को उज्जवल बनाने के लिए इस प्रयास के लिए मानव जाति उनकी सदैव ऋणी रहेगी।
योग और अध्यात्म दोनों ही मनुष्य के तन और मन दोनों को सुन्दर एवं उपयोगी बनाते हैं। योग के मायने हैं जोड़ना। योग मनुष्य की आत्मा को परमात्मा की आत्मा से जोड़ता है। इसलिए हमारा मानना है कि विश्व के प्रत्येक बालक को बचपन से ही योग एवं अध्यात्म की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए। सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए 'योग' वर्तमान समय की सारे विश्व की अनिवार्य आवश्यकता है। योगरहित तथा अध्यात्मरहित इंसान सरलता से अपने मन तथा इंद्रियों के नियंत्रण में
आने लगता है। इस कारण ऐसा व्यक्ति भोग से भरे जीवन की ओर सहजता से आकर्षित हो जाता है। योगी व्यक्ति विवाह उपरान्त संतान उत्पत्ति के लिए ही संभोग का उपयोग करेगा न कि भोग के लिए। साथ ही विवेक बुद्धि का अधिकतम उपयोग करके वह छोटे परिवार के लाभों को जीवन में अपनायेगा। मैं अपने 38 वर्षों के शैक्षिक तथा लेखन अनुभव के आधार पर पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि शिक्षा द्वारा ही विश्व में सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है। 38 वर्षों से रात्रि सेवा को मैंने इसलिए चुना ताकि एकाग्रतापूर्वक लेखन कार्य कर सकूं। आज विश्व भर के आधुनिक विद्यालयों के द्वारा बच्चों को एकांकी शिक्षा अर्थात केवल विषयों की भौतिक शिक्षा ही दी जा रही है, जबकि मनुष्य की तीन वास्तविकतायें होती हैं। पहला- मनुष्य एक भौतिक प्राणी है, दूसरा- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा तीसरा मनुष्य- एक आध्यात्मिक प्राणी है। 
इस प्रकार मनुष्य के जीवन में भौतिकता, सामाजिकता तथा आध्यात्मिकता का संतुलित विकास जरूरी है। हमारा दृढ़ विश्वास है कि संतुलित शिक्षा प्राप्त बालक जीवन में कभी भी जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि में योगदान नहीं करेगा। वह अपने सुखी तथा समृद्ध वैवाहिक जीवन की आधारशिला 'हम दो - हमारे दो' से आगे बढ़कर 'हम दो - हमारा एक' के सिद्धान्त पर दृढ़तापूर्वक चलकर रखेगा।
वर्तमान में केन्द्र के सरकारी खजाने से पैसा गांव के प्रधान तथा डायरेक्ट बेनिफिट ट्रान्सफर योजना के अन्तर्गत 439 योजनाओं के माध्यम से पात्र व्यक्ति तक आ रहा है। भारत सरकार को बस एक धक्का लगाकर राष्ट्रीय आय की कुछ धनराशि सीधे प्रत्येक वोटर के खाते तक पहुंचाना है। अति आधुनिक मशीनीकरण तथा कम्प्यूटर के युग में प्रत्येेक बेरोजगार को नौकरी देना सम्भव नहीं है। बेरोजगार युवा परिवार के लिए एक बोझ की आत्मग्लानि में जीता है। उदाहरण के लिए एक पिता की चार संतानों में भैस का दूध तो बांटा जा सकता है लेकिन भैस नहीं बांटी जा सकती। इसी प्रकार धरती माता की प्रत्येक संतान में पैसा तो बांटा जा सकता है लेकिन बराबर से जमीन नहीं बांटी जा सकती। 
विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत को गरीब और अमीर प्रत्येक वोटर के लिए भावी वोटरशिप योजना को जल्द से जल्द लागू करके विश्व के समक्ष मिसाल प्रस्तुत करना चाहिए। धरती को विकराल तथा विश्वव्यापी समस्याओं से मुक्ति का मार्ग भावी वोटरशिप योजना से अवश्य प्रशस्त होगा। सारा विश्व भारत में लोकतंत्र के विकास तथा सफलता की उच्चतम अवस्था का अनुकरण करने के लिए भावी वोटरशिप योजना को अपने-अपने देश में लागू करेगा। इस प्रकार मानव जीवन की शारीरिक, मानसिक, यहाँ तक कि सामाजिक, राजनैतिक, वैश्विक समस्याओं के लिए समाधान के नए द्वार खुलेंगे। भारतीय संस्कृति के आदर्श वसुधैव कुटुम्बकम् की परिकल्पना साकार होगी। 



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