क्यों आता हूं...
सुरेंद्र सैनी...
हर दिन सफर से टूट कर आता हूं
अपनी उम्र से ज्यादा बूढ़ा नजरआता हूं
थक गया-पीठ पेट का फासला तय करते
संघर्ष की बेताबी अपने संग ले कर आता हूं
भूल गया हूं जीवन अपने ढंग से जीना
जिम्मेदारियों का बोझ पीठ पर लादकर लाता हूं
बाजार की राहों से नजर बचा लूं
अपने एहसासों को गिरवी रखकर उधार लाता हूं
नहीं करता अब कोई फरमाईश परिवार में
जानते हैं हर दिन मायूसी का व्यापार लाता हूं
कब तक चलेगा ऐसे ही "उड़ता"
हर दफा मुश्किलों का अंबार लाता हूं
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