माँ के कदमों के नीचे जन्नत है! - डॉ. जगदीश गांधी,


       ऊपर जिसका अंत नहीं, उसे आसमां कहते हैं, जहान में जिसका अंत नहीं, उसे माँ कहते हैं। ‘‘माँ! कैसी हो..?’’ इतना ही पूछ लेने से माँ को सब कुछ मिल जाता है। भाग्यशाली वह नहीं जिसके पास विपुल संपत्ति है बल्कि वह है जिसके पास अपने बूढे़ माँ-बाप के लिए समय है। जिस दिन तुम्हारे कारण माँ-बाप की आँखों में आँसू आते हैं, याद रखना, उस दिन तुम्हारा किया सारा धर्म.... आँसू में बह जाता है! इसलिए कहा जाता है कि यदि धरती में कही जन्नत है तो वह माँ के कदमों के नीचे है।


अधिकार से पहले अपने कर्तव्य की तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है :- महात्मा गांधी कहते थे - जब मैं युवा था तो मैंने अपने जीवन का आरम्भ अपने अधिकारों पर आग्रह करने से किया था। लेकिन तुरन्त बाद पता चला कि वास्तव में मुझे कोई अधिकार नहीं है - यहाँ तक कि अपनी पत्नी पर भी नहीं है। फलतः मैंने तो शुरूआत अपनी पत्नी, अपने बच्चों, मित्रों, साथियों, समाज तथा विश्व के प्रति अपने कर्तव्य का पता लगाने और उसे पूरा करने से की। अर्थात मैंने जीवन में अधिकार से पहले अपने कर्तव्य की तरफ ध्यान देने की आवश्यकता को महसूस किया।


माँ को माँ कहने का वक्त नहीं :-  किसी ने क्या खूब कहा है - वक्त नहीं हर खुशी है लोगों के दामन में, पर एक हंसी के लिए वक्त नहीं। दिन रात दौड़ती दुनियाँ में, जिन्दगी के लिए ही वक्त नहीं। माँ की लोरी का एहसास तो है, पर माँ को माँ कहने का वक्त नहीं। सारे रिश्तों को तो हम मार चुके, अब उन्हें दफनाने का वक्त नहीं। गैरों की क्या बात करें, जब अपनों के लिए ही वक्त नहीं। आंखों में है नींद बड़ी, पर सोने का भी वक्त नहीं। दिल है गमों से भरा हुआ, पर रोने का भी वक्त नहीं। भौतिकता की दौड़ में ऐसे दौड़े, कि थकने का भी वक्त नहीं। पराए एहसान की क्या कद्र करे,ं जब अपने सपनों के लिए ही वक्त नहीं। तू ही बता ऐ जिन्दगी इस जिन्दगी का क्या होगा, कि हर पल मरने वालों को जीने के लिए भी वक्त नहीं।


जरा सोचो! क्या माँ-बेटी के बिना बसा सकोगे संसार? :- कहती बेटी बाँह पसार, मुझे चाहिए प्यार, दुलार, बेटी की अनदेखी क्यूँ, करता है निष्ठुर संसार, सोचो जरा हमारे बिन बसा सकोगे घर-परिवार? जन्म से लेकर युवा अवस्था तक मुझ पर लटक रही तलवार, मेरी व्यथा, वेदना का अब हो स्थाई उपचार। एक प्रेरणादायी भजन की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं - मैं तो मंदिर गया पूजा-आरती की, पूजा-आरती करते ही ख्याल आ गया? माता-पिता की सेवा न की ऐसे मंदिर में जाने से क्या फायदा?


माँ-बाप रूपी वट वृक्ष की शीतल छाँव में सम्पूर्ण परिवार सुख से रहता है :- माँ घर का गौरव तो पिता से घर का अस्तित्व होता है। माँ के पास अश्रुधारा तो पिता के पास संयम होता है। दोनों समय का भोजन माँ बनाती है तो जीवन भर भोजन की व्यवस्था पिता करता है। कभी ठोकर या चोट लगने पर ‘‘ओ माँ’’ ही मुँह से निकलता है। लेकिन रास्ता पार करते समय कोई ट्रक आकर ब्रेक लगाये तो ‘‘बाप रे’’ यही मुँह से निकलता है। माँ-पिता एक वट वृक्ष हैं जिसकी शीतल छाँव में सम्पूर्ण परिवार सुख से रहता है। बचपन के आठ साल तुझे अंगुली पकड़कर जो माँ-बाप स्कूल ले जाते थे, उस माँ-बाप को बुढ़ापे के आठ साल सहारा बन जाने से, शायद थोड़ा सा हमारा कर्ज थोड़ा सा हमारा फर्ज पूरा होगा। माँ-बाप की आँखों में दो बार ही आँसु आते हैं एक तो लड़की घर छोड़े तब और दूसरा लड़का मुँह मोड़े तब।


पारिवारिक एकता विश्व एकता की आधारशिला है :- माँ-बाप होने के नाते हमें अपने बच्चों को खूब पढ़ाना-लिखाना चाहिए। साथ ही ईश्वर भक्त, पवित्र तथा चरित्रवान बनाना चाहिए। हमारे बच्चे जीवन में इतनी ऊँचाइयाँ अवश्य छू लें कि लोग हमसे पूछें कि आपने ऐसे क्या पुण्य किए जो ऐसी अच्छी संतान आपके घर में पैदा हुई? विश्व एकता की शिक्षा इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। पारिवारिक एकता विश्व एकता की आधारशिला है।


 


 


 


 


 


 


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